सलोनी का प्यार (उपन्यास)लेखनी कहानी -17-Jan-2022
भाग -6
यहां इस नए मोहल्ले में आकर तो मैं खुद को अपनी शक्ल सूरत को भूल ही गई हूं, यहां कोई मुझे कल्लो माई कहकर नहीं बुलाता है। सब मेरे साथ खेलने को तैयार रहते हैं। थैंक्यू थैंक्यू बजरंगबली।जै बजरंगबली के नीचे हनुमान जी की तस्वीर हाथ में गदा लिए हुए बनाई थी। डायरी का ये पन्ना देख सलोनी आज भी अपने दोनों हाथ जोड़ प्रणाम कर डायरी को माथे से लगा लेती है।
चित्रकारी का शौक कुछ ज्यादा ही था उन दिनों, सुरजीत के साथ हमेशा कंपीटिशन रहता .. किसकी पेंटिंग अच्छी बनेगी। सुरजीत की हैंडराइटिंग बहुत ही सुन्दर थी, पढ़ने में भले ही उसका मन नहीं लगता था पर जब हम दोनों एक ही ट्यूशन में पढ़ने जाने लगे तो मैं उसकी हैंडराइटिंग देखकर हैरान रह जाती,कितना सजा सजा कर हर अक्षर लिखता था जैसे एक मूर्ति कार अपनी हर मूर्ति को आकार देता है। वो मुझे समझाता सल्लू अपनी हैंडराइटिंग सुधार कैसे कौआ के टांग जैसा लिखती है।
मेरी गणित अच्छी थी और उसकी हिंदी । जब गर्मी की दो महीने की छुट्टियों में हर रोज एक पेज हिंदी में सुलेख लिखना होता तो ज्यादातर वहीं मेरी कॉपी में लिख देता उसके बदले मैं उसके गणित के सवाल और पहाड़े लिखती। ऐसा नहीं था कि मेरी हैंडराइटिंग बहुत गन्दी थी पर मुझे बहुत से काम करने थे , बहुत कुछ सीखना था तो बस जल्दी जल्दी पूरा करने के चक्कर में ही बिगड़ गई थी मेरी हैंडराइटिंग।
हम घंटों बैठे बातें करते, वो अपने भविष्य के बारे में बताता वो हीरो बनना चाहता था। मैं समझाती और राहुल की गल्ती भी बताती,कभी भूल कर ऐसा कोई कदम ना उठाना जिससे तुम्हारे मम्मी पापा को तकलीफ पहुंचे।पहले पढ़ाई तो पूरी कर लें फिर देखियो हीरो बनने के सपने।
धीरे-धीरे उसकी स्कूल से आने वाली शिकायतें बढ़ती गई और मैं उससे मिलने से डरती।हम दोनो किशोरावस्था में थे। कक्षा नौ में सुनीता दीदी हमारी ट्यूशन टीचर की वो बात हमेशा सतर्क करती,जब उन्होंने एक दिन बताया था कि ये नौंवी दसवीं क्लास यानि 14-15 साल की उम्र नमक के समान होती है। जिस तरह नमक भोजन में स्वाद लाता है वैसे ही कम या ज्यादा नमक भोजन में स्वाद बिगाड़ देता है। बिल्कुल संभल कर रहना चाहिए इस उम्र में ,यही उम्र बनने और बिगड़ने की है। एक बार फिसल गए तो खड़ा होना मुश्किल है। ये बात उस दिन सुरजीत की लाल आंखों को देखकर ही सुनीता दीदी ने कही थी।
मैं भी अब उसके व्यवहार में आए परिवर्तनों को नजर अंदाज नहीं कर पा रही थी।
नाईंथ क्लास में थे हम दोनों तब, जब मैं उसकी लाल आंखों से डरने लगी थी। मेरा शक यकीन में बदल गया जब एक दिन उसे मैंने सिगरेट पीते देखा। उसके हाथ से सिगरेट फैंक कसम दिलाई थी अपनी दोस्ती की। पर वो नहीं सुधरा, चौदह साल की उम्र से ही नशा करने की आदत लगा बैठा।ये सब उसकी गलत संगत का असर था। वैसे उसके पापा मम्मी को मैं चाचा चाची कहती थी और उसके भाई को भईया, पर उसे भाई नहीं मानता था मन।
एकतरफा प्यार जो कर बैठी थी मैं उससे, वो मेरे साथ सारी बातें शेयर करता।
एक दिन जब मेरा हाथ पकड़ कर बोला सल्लो जानती है आज तेरी भाभी को दूर से देखा, बहुत सुंदर है यार! दूध में गुलाब की पंखुड़ी से उसके होंठ। इतनी खूबसूरत लड़की मैंने जिंदगी में पहली बार देखी। नीले रंग के सूट में उसका गोरा बदल इतना खिल रहा था कि मेरी नज़र में वो इस तरह समां गई कि सीधे दिल में उतर गई...
वो मेरे दोनों हाथों को पकड़ उस लड़की की तारिफ कर रहा था जिसे उसने पहली बार देखा था और मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था।
सुरजीत भी राहुल की तरह ही तो निकला, ये समझने में मुझे कितने साल लग गए ।
मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था, हां एक बदसूरत सी दिखने वाली लड़की के सीने में भी दिल होता है जो प्यार की उम्मीद रखता है। सुरजीत के सामने कभी मैंने खुद को बदसूरत नहीं समझा, बल्कि मुझे तो यकीन था उसके हाव भाव से कि वो भी मुझे पसंद करता है।वो मेरे बाहरी रूप को नहीं बल्कि मेरे मन की सुंदरता को पसंद करता है । जैसा पापा कहते हैं, कि मेरा मन बहुत सुंदर है। पर नहीं ये मेरी गलतफहमी थी, मुझ सांवली काली कलूटी को कोई पसंद नहीं कर सकता ये बात मैं पूरी रात खुद को समझाती रही। सलोनी सपने देखना छोड़ दें तेरे नसीब में प्यार है ही नहीं।
उसके जाने के बाद खुद को संभालना मुश्किल हो गया था। बहुत देर तक उसके हाथों का स्पर्श जो मुझे अक्सर उन्मादित करता था उस दिन उसके प्रति घृणा से भर गई थी मैं। क्या उसने कभी मेरी आंखों में अपने लिए प्यार नहीं देखा। क्या उसे मुझसे प्यार नहीं था तो वो मेरी भावनाओं से क्यों खेल रहा था।
उम्र ही शायद ऐसी थी जब प्यार हो ही जाता है या ये मात्र आकर्षण था।
सुरजीत ने एक काम मुझे सौंपा था।
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कविता झा काव्या कवि
# लेखनी
##लेखनी धारावाहिक लेखन प्रतियोगिता
२७.०२.२०२२